श्रीअरविन्द और माताजी

 

      (माताजी ने लाल कमल को श्रीअरविन्द का फूल और श्वेत कमल को अपना फूल बताया था)

 

 लाल कमल-धरती पर परम प्रभु की अभिव्यक्ति का प्रतीक ।

 

       शीत कमल-' भागवत चेतना ' का प्रतीक ।

 

२ फरवरी, १९३०

 

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 हमारा 'प्रेम ' शाश्वत 'सत्य ' है ।

 

७ अप्रैल, १९३४

 

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उनके बिना, मेरा अस्तित्व नहीं है ।

 

मेरे बिना, वे अनभिव्यक्त हैं ।

 

६ मई, १९५८

 

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जब तुम अपने हृदय और विचार में मेरे ओर श्रीअरविन्द के बीच कोई भेद न करोगे, जब अनिवार्य रूप से श्रीअरविन्द के बारे में सोचना मेरे बारे में सोचना हो ओर मेरे बारे में सोचने का अर्थ हो श्रीअरविन्द के बारे में सोचना, जब एक को देखने का अनिवार्य अर्थ हो दूसरे को उसी एक ही अछिद्र व्यक्ति के रूप में देखना, तब तुम यह जान लोग कि तुम अतिमानसिक शक्ति और चेतना के प्रति खुलना शुरू कर रहे हो ।

 

४ मार्च १९५८

 

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 मां-श्रीअरविन्द शरण मम ।

 



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